वसुंधरा आई वी एफ

अब हर घर गूंजे की किलकारी . . . संतान सुख से बढ़कर कोई सुख नहीं



1996 से निःसंतानता के क्षेत्र में कार्यरत वसुंधरा हॉस्पिटल निःसंतानता उपचार के लिए एक अच्छा विकल्प है। वसुंधरा अस्पताल की स्थापना 1996 में की गई, पिछले 30 वर्षों से एक लाख से अधिक निसंतान दम्पतियों एवं 22500 से अधिक परखनली शिशु का सफल इलाज कर उन्हें संतान सुख दिया जिसका श्रेय डॉ. संजय मकवाना, डॉ. रेनू मकवाना एवं हमारें भ्रूण वैज्ञानिक (एम्ब्र्योलॉजिस्ट) को जाता है !
आज वसुंधरा आई वी एफ एवं फर्टिलिटी रिसर्च सेंटर भारत के सर्वश्रेष्ठ फर्टिलिटी अस्पतालों में से एक है। साथ ही यहाँ आधुनिक उपकरणों एवं तकनीकों द्वारा निसंतान दम्पतियों की जांच एवं उपचार किया जाता है ।
अत्याधुनिक तकनीक जैसे एम्ब्रोस्कोप - जिसे टाइम लेप्स टेक्नोलॉजी भी कहा जाता है - इसमें भ्रूण के ऊपर निगरानी की जाती है एवं बिना डिश को बिना बाहर निकले उसमे होने वाले सेल डायवर्सन को भी देखा जा सकता है, जिससे अच्छे गुणवत्ता वाले भ्रूण को काम में लिया जा सके ! इस तकनीक द्वारा भ्रूण के गर्भाशय में स्थापित होने की संभावना अधिक हो जाती है जिससे निसंतानता दम्पतियों को करीब 75 प्रतिशत से अधिक सफलता हासिल की जा सकती है।

आज वसुंधरा अस्पताल FOGSI, IFS, ISAR , IAGE का ट्रेनिंग सेण्टर है जहा करीब 275+ से अधिक डॉक्टर्स को ट्रेनिंग दी जा चुकी है !

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कृत्रिम गर्भाधान
(IUI)

वीर्य से शुक्राणु को अलग करके गर्भाशय में पतली नली द्वारा प्रवेष करने की क्रिया को IUI (Intra Uterine Insemination) कहते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा प्रथम 6 माह में गर्भधारण की संभावना सर्वाधिक होती है। कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर 25-30 % के करीब होती है।



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परखनली शिशु चिकित्सा (IVF)

यह गर्भधारण की एक कृत्रिम प्रक्रिया है। जिसमे महिला के अंडाशय से अंडे निकालकर उसका संपर्क शुक्राणुओ से कराया जाता है। इसके बाद निषेचित भ्रूण को महिला के गर्भाशय मे स्थापित कर दिया जाता है, यह तकनीक उन महिलाओ / पुरुषो के लिए वरदान साबित हुई है जो किन्ही कारणो से माँ एवं पिता नहीं बन पा रहे है ।



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इक्सी - इ म सी (ICSI - IMSI)

यह प्रक्रिया पुरुष बांझपन उपचार हेतु सबसे उन्नत एवं सफल तरीका है, इन तकनीकों द्वारा सबसे अच्छी गुणवत्ता के शुक्राणु का आकलन कर महिला अंडो के इंट्रासाइटोप्लास्मिक में स्पर्म को इंजेक्ट किया जाता है, इस तकनीक द्वारा फर्टिलाइजेशन की दर करीब 99 % तक हो जाती है।



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वीर्य बैंक / भ्रूण बैंक

इसमें शुक्राणु व भ्रूण को 15 से 20 साल तक के लिए सुरक्षित रखा जाता है तथा भविष्य में इसकी जरूरत पड़ने पर उपयोग में लिया जा सकता है। आज कल युवाओं में कैंसर बढ़ रहा है, कीमोथेरेपी से पूर्व पुरुष अपने शुक्राणु को सुरक्षित करवा सकतें है। ब्लास्टोसिस्ट कल्चर (Blastocyst Culture) - यह तकनीक आधुनिक तकनीकों में से एक है।


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महिलाओं में निसंतानता

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आयु संबंधित निसंतानता

अनुभवी एवं विश्वस्तरीय चिकित्सकीय सेवाएं

30+

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Your dream - Our mission

Our Specialised Team

Dr. Sanjay Makwana

(M.B.B.S., M.S., FICOG & FIAGES)
मुख्य चिकित्सा निदेशक

वरिष्ठ निःसंतानता, IVF विशेषज्ञ


Dr. Renu Makwana

(M.B.B.S, M.S. & FICOG)
मुख्य चिकित्सा निदेशक

वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ , फिटो मेटरनल मेडिसन विशेषज्ञ

Dr. Prateek Makwana

(M.B.B.S.)

वरिष्ठ एम्ब्रियोलॉजिस्ट



Dr. Tarika Sen

(M.Sc & Ph.D)

वरिष्ठ एम्ब्रियोलॉजिस्ट




Dr. Ashifa Majeed

M.B.B.S., M.S, MRCOG

निःसंतानता एवं एंडोस्कोपी सर्जरी विशेषज्ञ

Dr-Noopur-Bajpai

M.B.B.S., M.S., DGO, FMAS & DMAS

IVF विशेषज्ञ, लेप्रोस्कोपिक सर्जन


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FAQ

बिना किसी गर्भनिरोधक के इस्तेमाल से 12 महीने तक नियमित संभोग के बाद भी गर्भधारण नहीं होना निःसंतानता कहलाता है ।
यह दो प्रकार की होती है - प्राथमिक और द्वितीयक (सैकेण्डरी)।
निःसंतानता एक चिकित्सा समस्या है, यह कोई अभिशाप या कलंक नहीं है | उचित इलाज तथा देखभाल से सुधारा जा सकता है | लेकिन निःसंतान दम्पतियों को आशा नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि आजकल आधुनिकतम एवं नवीन तकनीकियों की सहायता से महिलाओं के लिए न केवल उनकी प्रजनन आयु के दौरान बल्कि रजोनिवृत्ति के बाद भी गर्भधारण करना संभव हो गया है।
पुरुष निःसंतानता का मुख्य कारण - 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में शुक्राणु में कमी या खराब गुणवत्ता वाले शुक्राणु ही पुरुष निःसंतानता के मुख्य कारण होते है । अन्य मामलों में शारीरिक समस्याओं, हार्मोनल असंतुलन और आनुवंशिक दोष के कारण हो सकते हैं। शुक्राणु असामान्यताओं में शामिल हैं-

o ओलिगोस्पर्मिया। शुक्राणुओं की कम संख्या (Oligospermia)– अगर वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 15 मिलियन प्रति एमएल से कम है तो यह ओलिगोस्पर्मिया (शुक्राणु की काम संख्या) कहलाती है।
o एजूस्पर्मिया। निल शुक्राणु /शून्य शुक्राणु (Azoospermia)- यदि वीर्य स्खलन में शुक्राणु की संख्या शून्य है तो इसे एजूस्पर्मिया कहा जाता है।
o अस्थेनोस्पर्मिया (शुक्राणु की गतिशीलता में कमी) (Asthenospermia)– वीर्य में शुक्राणु की गतिशीलता असामान्य या कम गतिशीलता होना (गति धीमी है और सीधी रेखा में नहीं है) । अधिकांश मामलों में इस हानि के पीछे आणविक तंत्र को पूरी तरह से समझा नहीं गया है।
o टेरटोस्पर्मिया (शुक्राणु की आकृति में असामान्यता) (Teretospermia)– प्रजनन क्षमता के लिए शुक्राणु का आकार और आकृति सामान्य होनी चाहिए। जन्मजात जन्म दोष, रोग (मम्स), रासायनिक एक्सपोजर/ व्यावसायिक हानि और जीवन शैली की आदतें / लत आदि से भी शुक्राणु असामान्यताएं हो सकती है।
महिला निःसंतानता के कई कारण हो सकतें है, जैसे कि –

फैलोपियन ट्यूब से जुड़े विकार – फ़ेलोपियन ट्यूब का मुख्य कार्य अंडे और शुक्राणु को आपस में मिलाना होता है, ओव्यूलेशन के बाद अंडा फैलोपियन ट्यूब के माध्यम से अंडे और शुक्राणु का निषेचन होकर भ्रूण गर्भाशय में स्थापित होता है। अगर ट्यूब में किसी भी प्रकार का विकार जैसे -संक्रमण (आमतौर पर एसटीडी) या अन्य कोई भी बीमारी होने पर डिम्ब नलिका का बंद हो जाती है, इसके अलावा एंडोमेट्रियोसिस, पैल्विक सर्जरी-ओवेरियन सिस्ट के परिणामस्वरूप भी फैलोपियन ट्यूब को नुकसान हो सकता है।

ओवरी की कार्यप्रणाली में व्यवधान / हार्मोनल कारण – माहवारी के दौरान सिंक्रोनाइज्ड हार्मोनल परिवर्तन होते है, हॉर्मोन परिवर्तन में अंडाशय (ओव्युलेशन) से अंडे को बाहर निकलने और एंडोमेट्रियल लाइनिंग को बढ़ाने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते हैं, जो की फर्टिलाइल्ड एग (भ्रूण) को गर्भाशय में प्रत्यारोपण में मदद करता है। ओव्यूलेशन में व्यवधान निम्नलिखित स्थितियों में देखा जाता है-
o पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) – यह महिला निःसंतानता का सबसे सामान्य कारण है। पीसीओएस में हार्मोनल असंतुलन से ओव्यूलेशन की प्रक्रिया को नोर्मल नहीं रहती है ।
o कार्यसंबंधी हाइपोथैलेमिक एमेनोरिया – एथलीटों/ पहलवान / खिलाड़ियों में अत्यधिक शारीरिक मेहनत या भावनात्मक तनाव के परिणामस्वरूप एमेनोरिया (माहवारी का अभाव) हो सकता है।
o कम ओवेरियन रिजर्व – अंडाशय में अंडों की संख्या कम होने की वजह से महिलाओं को गर्भधारण करने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है।
o समय से पहले ओवेरियन विफलता – अंडेदानी का 40 वर्ष की आयु से पहले ही काम करना बंद कर देती हैं, यह प्राकृतिक या बीमारी, सर्जरी, कीमोथेरेपी, या रेडिएशन के कारण हो सकती है।

गर्भाशय के कारण – गर्भाशय की असामान्य शारीरिक रचना – पॉलीप्स और फाइब्रॉएड का होना जिससे भ्रूण प्रत्यारोपण में हस्तक्षेप कर सकती है, और कभी-कभी सेप्टेट गर्भाशय गुहा जैसे दोष भी हो सकते हैं। यूनिकॉर्नट, बाइकोर्नट गर्भाशय और यूटेरस डिडेलफिस जैसी विसंगतियां भी निःसंतानता का कारण बनती हैं।

गर्भाशय ग्रीवा के कारण – कुछ महिलाएं गर्भाशय ग्रीवा के रोगों से पीड़ित हो सकती हैं जहां शुक्राणु असामान्य म्यूकस के उत्पादन या पूर्व में सर्वाइकल शल्य चिकित्सा के कारण शुक्राणु ग्रीवा मार्ग से गुजर नहीं पाते हैं।

निःसंतानता का कारण महिला या पुरुष या फिर संयुक्त रूप से दोनों हो सकते हैं। कभी-कभी अस्पष्ट निःसंतानता भी कारण हो सकती है जो कि साधारण स्टेण्डर्ड जांच में सामने नहीं आती है। गर्भधारण के लिए मुख्य रूप से महिला में ओव्यूलेशन, निषेचन और भ्रूण स्थापित होना जरूरी होता है, यदि इसमें से कोई भी परेशानी हो तो निःसंतानता हो सकती है।

निःसंतानता का कारण बनती हैं और स्वस्थ संतान प्राप्ति के लिए निःसंतान दम्पती हेतु क्या उपचार विकल्प उपलब्ध हैं।

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